सोमवार, 14 जनवरी 2013

गाइड (1965)

गाइड 1965  एक हिन्दी देव आनंद और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म है. यह विजय आनंद, जिन्होंने पटकथा के लिए योगदान भी दिया,के द्वारा निर्देशित फिल्म थी. ये फिल्म समीक्षकों द्वारा प्रशंसित उपन्यास, आर.के. नारायण द्वारा गाइड, पर आधारित है, और व्यापक रूप से भारतीय फिल्म उद्योग की कृतियों में से एक मानी जाती है यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एक बेहतरीन हिट साबित हुई. फिल्म एसडी बर्मन द्वारा यादगार संगीत एवं मुख्य कलाकारों द्वारा अपने उत्कृष्ट अभिनय की वजह से यादगार साबित हुआ. टाइम पत्रिका में गाइड पांचवे नंबर पर सर्वश्रेष्ठ बॉलीवुड क्लासिक्स की अपनी सूची पर सूचीबद्ध है.  
फिल्म शुरू होती है जब राजू जेल से रिहा हो रहा है, और फिर कहानी फ़्लैशबैक में चलती है। राजू एक गाइड है, जो पर्यटकों को ऐतिहासिक स्थलों में घुमाकर अपनी कमाई करता है। एक दिन, एक अमीर और बूढ़ा पुरातत्वविद् मार्को उनकी युवा पत्नी रोज़ी (वहीदा रहमान), जो कि एक वेश्या की बेटी है, के साथ शहर में आता है। मार्को शहर के बाहर गुफाओं में कुछ शोध करना चाहता है और अपने गाइड के रूप में राजू को काम देता है। वह एक नई गुफा का पता लगाता है और अपने काम में इतना खो जाता है कि रोज़ी पर ध्यान नहीं देता। जब मार्को गुफा की खोज में लगा हुआ है, राजू रोज़ी को सैर सपाटे के लिए ले जाता है और उसके नृत्य क्षमता और मासूमियत की भूरि-भूरि प्रशंसा करता है। रोज़ी राजू को बताती है कि वह एक वेश्या की बेटी है और वह समाज में सम्मान हासिल करने के लिए कैसे मार्को की पत्नी बनी, लेकिन उसके लिए उसने एक बड़ी कीमत चुकाई है क्योंकि उसे नृत्य का जुनून है जबकि यह मार्को को सख़्त नापसंद है। इस बीच, रोज़ी जहर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश करती है। इस घटना की खबर मिलने पर मार्को गुफाओं से वापस आता है और रोजी को ठीक देख कर काफ़ी नाराज़ होता है और रोज़ी से कहता है कि उसकी आत्महत्या करने की कोशिश एक नाटक थी, अन्यथा अगर वह वास्तव में मरना चाहती थी तो अधिक नींद की गोलियाँ खाकर यह आसानी से कर सकती थी। एक दिन जब रोज़ी गुफाओं में जाती है तो पाती है कि मार्को एक आदिवासी लड़की के साथ प्रेम रच रहा है। इसको लेकर रोज़ी और मार्को में काफ़ी कहा-सुनी होती है और रोज़ी एक बार फिर आत्महत्या करने की कोशिश करती है।
 यह फिल्म उतार चढ़ाव से भरपूर है और इसका क्लाइमेक्स अपने आप में अलग है! रिहाई होने के बाद राजू अकेला भटकता रहता है। गरीबी, निराशा, भूख और अकेलेपन के कारण वह इधर-उधर भटकता है। एक दिन वह कुछ साधुओं की टोली के साथ एक छोटे से गाँव के पुराने मंदिर के अहाते में सो जाता है और अगले दिन उस मंदिर से निकलने से पहले एक साधु सोते हुये राजू के ऊपर पीताम्बर वस्त्र उढ़ा देता है। अगले दिन गांव का एक किसान, भोला, पीताम्बर वस्त्र में सोते हुये राजू को साधु समझ लेता है। भोला की बहन शादी न करने की ज़िद कर रही थी। भोला उसे राजू के पास लाता है और राजू उसे समझा-बुझाकर शादी के लिए राज़ी कर लेता है। भोला और भी आश्वस्त हो जाता है कि राजू एक साधु है। वह यह बात सारे गांव में फैला देता है। गांव वाले उसे साधु मान लेते हैं और उसके लिए खाना और अन्य उपहार लेकर आते हैं और अपनी समस्याएं भी उसको बताते हैं। अब राजू उस गांव में स्वामी जी के नाम से जाना जाने लगता है और गांव के पण्डितों से उसके मतभेद भी हो जाते हैं। गांव वालों को एक कहानी सुनाते हुये राजू उनको एक साधु के बारे में बताया कि एक बार एक गांव में अकाल पड़ गया था और उस साधु ने १२ दिन तक उपवास रखा और उस गांव में बारिश हो गई।
संयोग से उस गांव के इलाके में भी अकाल पड़ जाता है। गांव का एक मूर्ख राजू से वार्तालाप के दौरान सुनता कुछ और है और गांव वालों को आकर बताता है कि स्वामी जी ने वर्षा के लिए १२ दिन का उपवास करने का निर्णय लिया है। राजू पशोपेश में पड़ जाता है। पहले तो राजू इसका विरोध करता है। वह भोला को यहाँ तक बताता है कि वह एक सज़ायाफ़्ता मुल्ज़िम है जिसे एक लड़की के कारण सज़ा मिली है। लेकिन इस पर भी गांव वालों की उस पर आस्था कम नहीं होती और वह कुख्यात डाकू रत्नाकर का उदाहरण देते हैं जो आगे चलकर वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध होते हैं।
अंततः राजू उपवास के लिए राज़ी हो जाता है हालांकि उसे विश्वास नहीं होता कि मनुष्य के उपवास रखने में और वर्षा होने में कोई संबन्ध है। लेकिन उपवास के दौरान राजू को आध्यात्मिक विकास होता है और उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल जाती है। हज़ारों की संख्या में दर्शनार्थी उससे आशीर्वाद लेने आने लगते हैं। उसकी ख्याति सुनकर रोज़ी, उसकी माँ और उसका दोस्त ग़फ़्फ़ूर भी उससे मिलने आते हैं। ग़फ़्फ़ूर को भोला मंदिर के अन्दर आने नहीं देता है क्योंकि वह दूसरे धर्म का है। राजू मध्यस्थता करता है और कहता है कि इन्सानियत, प्रेम और परोपकार ही उसका धर्म है। धीरे-धीरे राजू की हालत नाज़ुक होती जाती है। आखिर में बारहवें दिन वर्षा होती है लेकिन राजू का निधन हो जाता है। जहाँ एक ओर मन्दिर के बाहर गांव वाले खुशी से झूम रहे हैं वहीं दूसरी ओर मन्दिर के अन्दर उसके स्वजन उसकी मृत्यु का मातम मनाते हैं।





फिल्म ट्रीटमेंट के मामले में ६० के दशक की सबसे नयी फिल्म साबित हुई औरहिंदी फिल्म जगत के १०० साल के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई आशा है आप सब को भी ये उतनी ही पसंद आएगी जितनी मुझे है

 मैं यहाँ यू ट्यूब विडियो डाल रहा हूँ आप इस पूरी फिल्म का मज़ा इस लिंक से उठा सकते हैं/

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